Himachal Inside: District of Himachal Pradesh, Kullu जिला कुल्लू, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश का जिला कुल्लू, मण्डी मुख्यालय से 65 किलोमीटर की दूरी पर, व्यास नदी के किनारे बसा हुआ पहाड़ी क्षेत्र है, इसके कुछ भू-भाग निम्न हिमालय और कुछ भाग ऊपरी हिमालय के अंतर्गत आते हैं। कुल्लू का अधिकांश भाग घाटियों के रूप में हैं, कुल्लू जिला के बहुत से क्षेत्र घाटियों के रूप में ही हैं, जिनसे लग घाटी, सैंज घाटी, मलाणा घाटी, मणिकर्ण घाटी आदि हैं। कुल्लू घाटी कुल्लू जिला की सबसे शानदार घाटी है। कुल्लू घाटी को एक और नाम से भी जाना जाता है, "देव घाटी' क्योंकि "वैदिक समय" से ही देवता गण कुल्लू की पवित्र धरती पर विचरण करते हैं। वैदिक समय से जुड़े हुए कई मन्दिर और स्थान आज भी कुल्लू जिले की खूबसूरती को चार चांद लगा देते हैं। कुल्लू जिला बर्फ से ढके बेहद ऊंचे वाले पर्वत शिखरों देवदार के घने जंगलों, प्राचीन मन्दिरों, सेब के बागीचों और अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। कुल्लू के लोगों की संस्कृति और परम्परा, मेहमान नवाज़ी और यहाँ की ख़ूबसूरती यहाँ आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती हैं।


कुल्लू जिला का ऐतिहासिक विवरण महाभारत, रामायण के समय से संबंध रखता है, हिंदू ग्रंथ और पुराणों के अनुसार पौराणिक "राजा पृथु", जिनके  नाम पर धरती (पृथ्वी) का नाम "पृथ्वी" हुआ, मूलतः कुल्लू के राजा थे। जब यह भू-भाग छोटी छोटी रियासतों या जनपदों के रूप में बसा हुआ था, सीमा विस्तार की चाह में मौर्य, नन्द साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। बाद में ये क्षेत्र मराठा और सिख्ख शासकों ने जीत लिए। कुल्लू के वर्तमान राजाओं की राजधानी 17 शताब्दी में राजा सिद्ध सिंह ने "नग्गर" में स्थापित की थी, जो बाद में राजा जगत सिंह ने जिला के मध्य भाग में स्थानांतरित कर दी जिसे उन्होंने "सुल्तानपुर" नाम दिया। बाद में ये क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के अधीन हुए। उस समय कुल्लू का अधिकांश भाग पंजाब प्रदेश के अंतर्गत में आता था, आजादी के बाद 1 नवंबर 1966 को कुल्लू क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। वर्तमान में सम्पूर्ण कुल्लू जिला अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती के लिए पुरे विश्व में एक अलग पहचान बनाए हुए है।



   

कुल्लू जिला का मुख्यालय कुल्लू में ही है। यहीं पर जिलाधीश कार्यालय और अन्य छोटे बड़े सरकारी कार्यालय हैं, कुल्लू जिला की 7 तहसीलें हैं, कुल्लू, भून्तर, सैंज निरमण्ड, मनाली, बंजार और आनी, जबकि जरी घाटी और निथर, जिला की 2 उप-तहसील हैं। कुल्लू की 204 पंचायतें हैं। कुल्लू जिले का कुल क्षेत्र 5,503 वर्ग कि.मी. है, 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल्लू जिला की कुल आबादी 4,37,474 है जिनमें लिंग अनुपात 950 महिला प्रति 1000 पुरुष का है। कुल्लू जिला में बोली जाने वाली मुख्य भाषा में पहाड़ी और हिन्दी हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में पंजाबी का प्रयोग भी किया जाता है। ​कुल्लू के कुल क्षेत्रफल का 65186 हेक्टेयर भाग कृषि क्षेत्र है। कृषि के लिहाज़ से कुल्लू जिला का अधिकांश पहाड़ी भाग हिमाचल, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और अन्य कई राज्यों के लिए काफी महत्व रखता है, क्योंकि जिला में भारी मात्रा में सब्जियों और फलों का उत्पादन होता है जो इन राज्यों को भेजा जाता है। सब्जी उत्पादन में गोभी, ब्रोकोली, टमाटर, आलू, मटर, मूली, शलगम आदि हैं जो जिले के किसानों की नकद फसलें हैं। दलहनी फसलें जिला में कम मात्रा में उगाई जाती है, इसका करण खेतों का सीढ़ीनुमा होना या मौसम की अनुकूलता हो सकती है। फलों में जिला में जापानी फल, पल्म, खुमानी, और सेब आदि है। कुल्लू का सेब पुरे भारत के अलावा विदेशों को भी सप्लाई किया जाता है। ज़िला में फलों के अनेकों बागीचे हैं जो सीज़न के दौरान विभिन्न फलों से भरे रहते हैं। कृषि, कुल्लू जिला के किसानों की आय का मुख्य जरिया है। कुल्लू के अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रो के लोगों का एक अन्य मुख्य व्यवसाय पशुपालन है, जिनमें दुधारू पशु के अलावा ऊन और पशम उत्पादन के लिए भेड़ पालन और खरगोश पालन किया जाता है।


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कुल्लू जिला "हथकरघा" के लिए भी पहचाना जाता है, कुल्लू शॉल, कुल्लवी टोपी, कुल्लवी जैकेट, पश्मीना शॉल और अन्य उत्पाद विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। शीत क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग ऊनी वस्त्रों का अधिक प्रयोग करते हैं, जिन पर बहुत सुंन्दर कलाकृतियां (Design) उकेरी जाती हैं। देश विदेश में कुल्लूवी हथकरघा की अलग पहचान है। कुल्लू जिला का मौसम ऋतु अनुकूल है। जिला का तापमान न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस है, यह मौसम गर्मी का भी मौसम होता है। गर्मियों में अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस है। सर्दियों में हिमपात का लुत्फ़ उठाने के लिए दूर दूर से पर्यटक यहाँ आते हैं। कुल्लू ज़िला में पर्यटकों के खास तौर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन करवाए जाते हैं। जिला के मनाली, कसोल, नग्गर, वशिष्ठ, मणिकर्ण, ज़री, सैंज वैली, ओल्ड मनाली, सोलंग आदि स्थान पर्यटकों के मनपसंद स्थान हैं। साल भर यहां घूमने फिरने वालों का मेला लगा रहता है, इसके अलावा कुल्लू में घूमने फिरने के लिए कई और स्थान हैं जिनमें सैंकड़ों साल पुराने मन्दिर और संग्रहालय हैं जिनमें मनाली में माता हडिम्बा मन्दिर, जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर बिजली महादेव मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, बंजार घाटी में श्रृंग ऋषि मन्दिर, नग्गर में रोरिक कला संग्रहालय मुख्य हैं।

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द ग्रेट नेशनल हिमालयन पार्क, फॉरेस्ट बीट्स हैं। ज़िला के घने जंगलों में विभिन्न प्रकार के पशु और पक्षी पाए जाते हैं जिनमें बर्फानी भालू, हिम तेंदुआ, मोनाल, जाजुराना जैसे दुर्लभ प्राणी रहते हैं। सैलानी यहां ट्रैकिंग का भी मजा ले सकते हैं। साल भर विदेशी पक्षी भी कुल्लू घाटी के पर्वतों और झीलों में की सैर करते हैं। ज़िला की व्यास, पार्वती और अन्य नदियों में ट्राउट मछली का शिकार करने के लिए शिकारी देश और विदेश से आते हैं। मत्स्य विभाग द्वारा हिमाचल में ट्राउट मछली का उत्पादन शुरू किया गया था जिसके लिए नॉर्वे से ट्राउट मछली का बीज लाया गया था। विभाग द्वारा हर साल मत्स्य आखेट प्रतियोगिता करवायी जाती है जिसमें देश और विदेश के लोग भाग लेते हैं।

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मणिकर्ण, कसोल और वशिष्ठ आदि स्थानों में गर्म पानी के प्राकृतिक स्त्रोत हैं। जिन्हें देखने के लिए पर्यटक काफी उत्साहित रहते हैं। मणिकर्ण में ही सिख धर्म के अपने गुरूद्वारे में माथा टेकने आते हैं। मणिकर्ण में खौलते हुए गर्म पानी का उपयोग चावल और खीर बनाने में किया जाता है, जैसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

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कुल्लू मनाली आने के लिए हवाई मार्ग, सड़क मार्ग का प्रयोग किया जा सकता है ,भुंतर कुल्लू का सबसे करीबी हवाई अड्डा है जो लगभग 10 -15 किलोमीटर है। अभी यहाँ रेल मार्ग नहीं है लेकिन कुछ सालों के बाद यहाँ रेल मार्ग से भी आया जा सकेगा। साल में कभी भी यहाँ आया जा सकता है, साल भर मौसम सुहाना होता है। कुल्लू लेह लद्दाख के लिए एक दरवाजे के रूप में हैं। यहीं से होकर लाखों पर्यटक लेह लद्दाख की तरफ बढ़ते हैं। अटल टनल से होकर पर्यटक बर्फीले पहाड़ों को अब साल भर आर पार कर सकते हैं। 

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