चम्बा में है यमराज का मंदिर जहाँ सबको आना पड़ता है Temples in Chamba Himachal

 हिमाचल प्रदेश का चंबा जिला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध माना जाता है। इस ऐतिहासिक पहाड़ी जिले को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता, क्योंकि यहां गांव-गांव और घाटी-घाटी में आस्था से जुड़े मंदिर देखने को मिल जाते हैं। अगर सवाल किया जाए कि चंबा में कितने मंदिर हैं, तो इसका सटीक आंकड़ा बताना मुश्किल है, लेकिन स्थानीय मान्यताओं और प्रशासनिक जानकारी के अनुसार चंबा जिले में सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर मौजूद हैं, जिनमें से कई सैकड़ों साल पुराने हैं।                                                                                                                         

                                                                    


चंबा शहर और इसके आसपास ही दर्जनों प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध नाम लक्ष्मी नारायण मंदिर समूह का आता है, जो 10वीं शताब्दी में राजा साहिल वर्मन द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर समूह चंबा की पहचान माना जाता है। इसके अलावा चंपावती मंदिर, हरिराय मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर और शक्ति देवी मंदिर भी शहर के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।


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अगर पूरे जिले की बात करें तो चंबा के दूर-दराज इलाकों जैसे भरमौर, सलूणी, पांगी और तीसा क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में मंदिर मौजूद हैं। भरमौर क्षेत्र को तो विशेष रूप से धार्मिक राजधानी माना जाता है। यहां स्थित मणिमहेश कैलाश और चौरासी मंदिर परिसर पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। चौरासी मंदिर परिसर में एक ही स्थान पर 84 देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जो चंबा जिले की धार्मिक विरासत को दर्शाते हैं। 


                                                                            



भरमौर क्षेत्र में स्थित यमराज मंदिर भी चंबा जिले के अत्यंत प्राचीन और रहस्यमयी मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर मणिमहेश यात्रा मार्ग से जुड़ा हुआ है और यहां भगवान यमराज की पूजा होती है, जो पूरे हिमाचल ही नहीं बल्कि देश के चुनिंदा स्थानों में से एक है, जहां यमराज को देवता के रूप में पूजने की परंपरा है। स्थानीय लोगों की गहरी आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है और कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना से न्याय और सत्य की प्राप्ति होती है। यह मंदिर भरमौर की धार्मिक पहचान को और अधिक विशिष्ट बनाता है। स्थानीय लोग दावा करते हैं कि हर व्यक्ति के मरने के बाद उसकी आत्मा यहाँ जरूर आती है। और यहीं से उसकी आगे की यात्रा शुरू होती है।  


                                                                



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पांगी और सलूणी जैसे दुर्गम इलाकों में भी गांवों के बीच छोटे-छोटे मंदिर हैं, जहां स्थानीय लोग पीढ़ियों से पूजा करते आ रहे हैं। इन मंदिरों में मुख्य रूप से शिव, दुर्गा, काली, नाग देवता और ग्राम देवताओं की पूजा होती है। कई मंदिर ऐसे हैं, जिनका उल्लेख स्थानीय लोककथाओं और जनश्रुतियों में मिलता है, हालांकि वे आधिकारिक पर्यटन सूची में शामिल नहीं हैं।


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स्थानीय लोगों का मानना है कि चंबा जिले में 500 से अधिक मंदिर हो सकते हैं, जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं और कुछ सिर्फ गांव या इलाके तक ही सीमित हैं। हर मंदिर का अपना इतिहास, मान्यता और आस्था जुड़ी हुई है। यही वजह है कि चंबा को सिर्फ पर्यटन स्थल ही नहीं, बल्कि एक बड़ा धार्मिक केंद्र भी माना जाता है।


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आज भी चंबा के मंदिर न सिर्फ पूजा-अर्चना के स्थल हैं, बल्कि यहां की संस्कृति, कला और स्थापत्य का जीवंत उदाहरण भी हैं। लकड़ी और पत्थर से बने ये मंदिर हिमाचली वास्तुकला की पहचान हैं। त्योहारों, मेलों और जातरों के दौरान इन मंदिरों में खास रौनक देखने को मिलती है।


                                                                   



कुल मिलाकर कहा जाए तो चंबा जिला मंदिरों की संख्या और उनकी ऐतिहासिक-धार्मिक महत्ता के कारण हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रमुख धार्मिक जिलों में से एक है। यहां के मंदिर न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए भी खास महत्व रखते हैं।

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