मसरूर मन्दिर || Rock Cut Temple - जहाँ पाण्डवों ने बनाया स्वर्ग जाने का दरवाजा

हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा में पांडवों ने अपने अज्ञातवास काल के दौरान का कुछ समय मसरूर नामक जगह पर भी बिताया था इस दौरान उन्होंने यहाँ उन्नीस मन्दिरों का निर्माण किया जो एक विशालकाय शिला को काट कर बनाये गए थे इसलिए इन मन्दिरों को Rock Cut Temple भी कहते हैं। पाण्डवों ने यहाँ एक सरोवर का भी निर्माण किया जो आज भी यहाँ मौजूद है।  


                                                                        

Photo:   Wikipedia 


काँगड़ा हवाई अड्डा से मात्र 35 किलोमीटर दूर मसरूर नामक जगह में शताब्दियों पुराने पाषाण निर्मित मन्दिर हैं जो मान्यता अनुसार पांडवों ने बनवाये थे ,इन्हें मसरूर के मन्दिर या Rock Cut Temple कहा जाता है , ये वास्तव में उन्नीस मंदिरों का समूह है जो एक बड़ी चट्टान को काट कर बनाये गए हैं। उत्तरी भारत के ये एकमात्र मन्दिर हैं जो इस तरह से चट्टान को काट कर बनाये गए हैं। इस तरह के मंदिर ज्यादातर दक्षिण भारत में देखने को मिलते हैं। इस मन्दिर को उत्तरी भारत का अजंता एल्लोरा कहा जाता है। ये स्थान हिमाचल की शीतकालीन राजधानी धर्मशाला से 41 किलोमीटर है।  



व्यास नदी के किनारे पर बने ये छोटे बड़े मन्दिर उत्तर भारत की प्राचीन नागर वास्तुशैली में बने हैं। इन मन्दिरों के ठीक सामने प्रसिद्ध धौलाधार के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं। ये मन्दिर धौलाधार पर्वत श्रृंखला की ओर मुख किये खड़े हैं धौलाधार को भगवान् शिव का निवास माना गया है और ये मन्दिर भी शिव को समर्पित हैं। उन्नीस मन्दिरों में से कुछेक मन्दिर साल 1905 में आये प्रलयंकारी भूकम्प के कारण क्षतिग्रस्त हो गए हैं। 




पुरातत्व विभाग के मतानुसार ये मन्दिर 8वीं शताब्दी के आरम्भ में बनाये गए थे। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान् श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की पाषाण निर्मित मूर्तियां स्थापित हैं। मन्दिर की दीवारों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। चट्टान को काट कर किस तरह से इतनी सुन्दर नक्काशी की गई यह फ़िलहाल एक रहस्य है। अपनी इस बनावट के कारण ही इन मन्दिरों को हिमाचल के अजंता एल्लोरा कहा जाता है हालाँकि ये एल्लोरा से भी काफी पुराने हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्र में पहाड़ की चट्टानों को काट कर, तराश कर यह मूर्तियां, सीढियाँ, दरवाजे व झरोखे बनाये गए हैं, ये वाकई में अपने आप में काफी हैरान करने वाला हैं। 


   


मसरूर मन्दिर व्यास नदी के किनारे पर बना है और इसके सामने धौलाधार की पहाड़ियां हैं। मन्दिर के साथ ही एक बड़ा सरोवर है जिसे लोक मान्यताओं के अनुसार पाण्डवों ने द्रौपदी और माता कुन्ती के लिए बनाया था। सरोवर में आज भी काफी पानी है। यहाँ आज भी चट्टानों को काट कर बनाये गए दरवाजे देखे जा सकते हैं जिनका, पाण्डवों ने यहाँ से स्वर्ग जाने के लिए निर्माण किया, इन दरवाजों को स्वर्गद्वार के नाम से जाना जाता है। इन सब बातों के चलते यह स्थान लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।   




मन्दिर की दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, भगवान् कार्तिकेय के अलावा अन्य देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। भारत सरकार ने मन्दिर को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में सरंक्षित किया हुआ है। हालाँकि मन्दिर तो प्राचीन है लेकिन इसकी खोज सन 1913 में एक अंग्रेज शोधकर्ता एच एल स्टलबर्थ द्वारा की गई थी। यह देश एकमात्र मन्दिर है जिसे समुद्रतल से  2500 फ़ीट की ऊंचाई पर एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।  



     

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