आचार्य चाणक्य नीति: जानें किन जगहों पर व्यक्ति को अपना समय बिल्कुल बर्बाद नहीं करना चाहिए
आचार्य चाणक्य इतिहास के सबसे बड़े रणनीतिकारों में गिने जाते हैं। उनकी नीतियाँ जीवन, समाज, राजनीति और व्यक्तिगत व्यवहार—हर क्षेत्र में आज भी उतनी ही उपयोगी हैं जितनी सदियों पहले थीं। चाणक्य नीति के कुछ श्लोक ऐसे हैं जो बताते हैं कि व्यक्ति को किन स्थानों, परिस्थितियों या लोगों के साथ अपना समय नहीं गंवाना चाहिए, ताकि जीवन बेहतर दिशा में आगे बढ़ सके।
आइए हर श्लोक को विस्तार से समझते हैं:
1. जहाँ सम्मान न मिले, रोज़गार न हो और सीखने का अवसर न हो—वहाँ रहना नुकसानदायक है
श्लोक:
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
चाणक्य का मानना है कि जीवन में प्रगति तभी संभव है जब इंसान ऐसे वातावरण में रहे जहाँ—
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उसके सम्मान की कद्र हो,
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सही आजीविका (earning) प्राप्त हो सके,
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कुछ जानने–सीखने के अवसर हों,
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और आसपास ऐसे लोग हों जो जरूरत पड़ने पर सहारा बन सकें।
जहाँ ये चारों चीज़ें ना हों, वहाँ व्यक्ति चाहे जितना संघर्ष कर ले, वह आगे नहीं बढ़ पाएगा।
ऐसे स्थान पर रहने से न सिर्फ मानसिक थकान बढ़ती है बल्कि जीवन भी ठहर सा जाता है।
इसलिए चाणक्य साफ कहते हैं—ऐसे स्थान को छोड़ देना ही समझदारी है।
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2. मूर्ख व्यक्ति के साथ समय बिताना ऊर्जा और मानसिक शांति दोनों नष्ट करता है
श्लोक:
मूर्खस्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।
भिनत्ति वाक्यशूलेन अदृश्यं कण्टकं यथा॥
चाणक्य मूर्ख व्यक्ति को “दो पैरों वाला पशु” बताते हैं।
अब प्रश्न ये है कि मूर्ख व्यक्ति इतना नुकसान कैसे कर सकता है?
क्योंकि—
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वह बिना समझे बोलता है,
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हर बात में विवाद खोज लेता है,
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सलाह मानना तो दूर, उल्टा गलत दिशा में ले जाता है,
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और छोटी-छोटी बातों से भी आपको भावनात्मक चोट पहुँचा सकता है।
चाणक्य इसे “अदृश्य कांटे” से तुलना करते हैं—
कांटा दिखता नहीं, लेकिन अंदर चुभकर पीड़ा देता है।
ठीक उसी तरह मूर्ख व्यक्ति के शब्द आपको भीतर तक तकलीफ पहुँचा सकते हैं।
इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना ही बुद्धिमानी माना गया है।
आचार्य चाणक्य की नीति: जीवन में किन लोगों से दूरी बनाकर रखना है जरूरी ?
3. किन तीन चीज़ों से विद्वान भी दुखी हो जाता है?
श्लोक:
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
इस श्लोक में चाणक्य बताते हैं कि तीन स्थितियाँ ऐसी हैं जिनसे बचना चाहिए—
(1) मूर्ख शिष्य को पढ़ाना
चाहे गुरु कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो, अगर शिष्य सीखने की इच्छा नहीं रखता या मूर्खता छोड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहता, तो उसका मार्गदर्शन करना बेकार है।
इससे शिक्षक की ऊर्जा, समय और मानसिक शांति—तीनों नष्ट होते हैं।
(2) दुष्ट या स्वभाव से बुरी स्त्री के साथ जीवन बिताना
घरेलू माहौल ही व्यक्ति की शांति और समृद्धि को निर्धारित करता है।
अगर घर का वातावरण तनावपूर्ण हो, तो जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं।
(3) हर समय दुखी या रोगी व्यक्तियों की संगत
नकारात्मक ऊर्जा बहुत तेजी से इंसान को अपनी चपेट में ले लेती है।
लगातार दुख, बीमारी और निराशा देखने से व्यक्ति स्वयं मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है।
इसलिए संतुलन जरूरी है—सहानुभूति रखो, लेकिन अपने जीवन को अवसाद का केंद्र मत बनने दो।
4. पाँच ऐसे स्थान जहाँ एक दिन भी नहीं रहना चाहिए
श्लोक:
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥
चाणक्य के अनुसार जहाँ ये पाँच चीज़ें नहीं हों, वहाँ रहना भविष्य के लिए खतरा बन सकता है—
1. धनिक व्यक्ति का होना (आर्थिक गतिविधियाँ)
समृद्ध लोग किसी भी क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों को चलाते हैं।
जहाँ धनिक न हों, वहाँ विकास की गति रुक जाती है।
2. विद्वान/शिक्षित ब्राह्मण का होना (ज्ञान का केंद्र)
विद्वान लोग समाज में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं।
जहाँ ज्ञान न हो, वहाँ अज्ञान फैलता है, और समाज गलत दिशा में चलने लगता है।
3. राजा या शासन का होना (कानून और व्यवस्था)
प्रशासन न हो तो अव्यवस्था बढ़ती है—
लोग असुरक्षित महसूस करते हैं और आर्थिक-सामाजिक अराजकता छा जाती है।
4. नदी का होना (जल स्रोत)
प्राचीन समय में नदी जीवन का आधार थी—खेती, पानी, व्यापार।
आज भी पानी के अभाव में कोई क्षेत्र विकास नहीं कर सकता।
5. वैद्य/चिकित्सक का होना (स्वास्थ्य सुविधा)
जहाँ इलाज की सुविधा न हो, वहाँ रहना जीवन पर जोखिम लाना है।
चाणक्य कहते हैं—ऐसे स्थान पर एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए क्योंकि वहाँ जीवन असुरक्षित और असुविधाजनक हो सकता है।

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