हिमाचल के 12 जिलों में से एक सोलन। सोलन की सीमाएं सिरमौर, मण्डी, बिलासपुर, शिमला जिलों से और पंजाब, हरियाणा से लगती हैं। राजधानी शिमला से सोलन की दूरी 45 किलोमीटर और चंडीगढ़ से कालका-शिमला राष्ट्रीय महामार्ग 22 द्वारा 66 किलोमीटर है। सोलन, बाहरी हिमालय
की सीमा में आता है। जिले का अधिकांश भू- भाग मध्यम पहाड़ी क्षेत्र है। सर्दियो में सोलन के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में हिमपात होता है। सोलन जिला समुद्र तल से 300 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर है जिस कारण यहां का मौसम पूरा साल सुहावना होता है। यह क्षेत्र शिवालिक या मैनक पर्वतीय क्षेत्र कहलाता है। जिला का पश्चिम -दक्षिण का कुछ भाग निम्न पर्वतीय क्षेत्र है जबकि, उत्तर-पूर्व का क्षेत्र उच्च पर्वतीय क्षेत्र है सोलन का यह नाम यहां की स्थानीय देवी, "माता शूलिनी" के नाम पर है। यहां के लोगों के मन में शूलिनी मां के प्रति गहरी आस्था है। 5,76,670 (2011) की कुल आबादी वाला सोलन जिला अपने क्षेत्र में तेजी से विकसित हो रहा है।यह पोस्ट आपके लिए रोचक हो सकता है :-
प्राचीन काल में वर्तमान सोलन का क्षेत्र किरात, अनार्य, सैथी, हाली आदि जाति के लोगों का निवास स्थान हुआ करता था। दूसरी शताब्दी तक यहां छोटे बड़े बहुत से राज्य बन चुके थे। भागल, भगत, अर्की, मांगल, कुनिहार, बेजा, कुठार, महलोग, कोठी, क्योंथल, नालागढ़ आदि कुछ रियासतों को गोरखाओं ने साल 1803-1805 में युद्ध में जीत लिया और यहां अपना शासन चलाने लगे। साल 1815 में अंग्रेजों ने गोरखाओं को परेशान किया और यहां ब्रिटानिया हुकूमत का परचम लहरा दिया। सभी रियासतें और जागीरें उनके शासकों को लौटा दी गई और क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन काल शुरू हुआ जो 15 अगस्त 1947 तक भारत की आजादी तक चला। 1948 में छोटी छोटी रियासतों को शिमला हिल्स स्टेट्स के साथ मिलाकर महासू जिला बनाया गया। 1 सितंबर 1972 को पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को साथ मिलाकर सोलन जिला बनाया गया। वर्तमान में सोलन जिला का मुख्यालय सोलन शहर में है, जहां पर सभी सरकारी कार्यालय स्थित हैं। सोलन जिले का क्षेत्र 1936 वर्ग किलोमीटर है और 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी 5,76,670 है। सोलन में महिला पुरुष अनुपत 880/1000 है। कुल साक्षरता दर 83.68% है। सोलन की तहसील बद्दी, नालागढ़, अर्की, कंडाघाट, रामशहर कसौली, दाड़लाघाट, कृष्णगढ़ और सोलन हैं जबकि ममलोग, पंजेहरा परवाणू, कुनिहार उपतहसील हैं। जिले की 211 कुल ग्राम पंचायत हैं। सोलन में सोलन नगर परिषद है जो हिमाचल का सबसे बड़ा नगर परिषद है लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा कर नगर निगम होने जा रहा है।
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सोलन जिला को ब्रिटिश सरकार की विरासत कह सकते हैं क्योंकि यहां अंग्रेजों ने काफी विकास कार्य करवाएं हैं जो सोलन के विकास और सुन्दरता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने सोलन में अपनी छावनी का निर्माण किया था और इस क्षेत्र को छावनी क्षेत्र घोषित किया था। यह छावनी क्षेत्र और यहां की इमारतें काफी योजनाबद्ध तरीके से बनाई गई हैं, जो आज भी उस समय की बेहतरीन निर्माण प्रणाली का बखान करती हैं। राजधानी शिमला से कालका तक रेल की शुरुआत भी ब्रिटिश काल में 1902 में हुई। नैरो गेज की ये रेल सोलन के काफी क्षेत्रों से हो कर गुजरती है। शिमला से कालका चलने वाली रेललाइन को यूनेस्को द्वारा "विश्व-धरोहर" के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। यह विश्व के उच्चतम रेल लाइन में से एक है। छावनी क्षेत्र (कैंट एरिया) में ही उन्नीसवी शताब्दी (19वीं सदी) में ब्रिटिश द्वारा चर्च का निर्माण करवाया गया था जो आज भी आकर्षण का केंद्र है।
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सोलन जिला के ऊपरी क्षेत्रों में लोगों के रोजगार का साधन कृषि है। यहां अधिकांश भूमि पर सब्जी उत्पादन किया जाता है, जिनमें टमाटर यहाँ की नकदी फसल है टमाटर का यहां बंपर उत्पादन किया जाता है, इस कारण सोलन को "सिटी ऑफ रेड गोल्ड" के नाम से भी जाना जाता है। सोलन जिला की "मशरूम सिटी ऑफ इंडिया" के रूप में भी पहचान है। यहाँ पूरी उत्तर भारत का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय है जिससे यहाँ बड़े पैमाने पर मशरूम का उत्पादन किया जाता है। मशरूम लोगों की कमाई बढ़ाने में काफी मददगार है। सोलन जिला हिमाचल प्रदेश के तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के रूप में खास पहचान बना चुका है। देश और विदेश की हजारों कंपनियों के उद्योग यहां स्थापित हैं जहां से देश भर में विभिन्न उत्पादों का वितरण किया जाता है। बड़े बड़े व्यव्सायी घरानों ने यहाँ भारी मात्रा में निवेश किया हुआ है। नालागढ़, बद्दी, बरोटीवाला आदि क्षेत्रों में प्रदेश के लाखों लोगों को रोजगार मिला है। ब्रिटिश काल में 1855 में सोलन जिले में मोहन मीकिन्स द्वारा शराब का कारखाना खोला गया था। सोलन में हिमाचल प्रदेश का पहला रीसाइक्लिंग प्लांट लगाया गया है जो सलग्रां नामक स्थान में लगाया गया है जहां शिमला और सोलन के विभिन्न क्षेत्रों से उठाया गया कूड़ा-कचरा लाया जाता है और यहां रीसाइक्लिंग कर दोबारा अन्य किसी रूप में प्रयोग करने लायक बनाया जाता है, सूखा कचरा कागज बनाने और गीला कचरा कम्पोस्ट या खाद बनाने के और किसी अन्य रूप में काम आता है, इस से यहां साफ सफाई का माहौल बना रहता है।
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सोलन विभिन्न धर्मों के लोगों का निवास स्थान है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध धर्म के लोग मिल जुल कर, प्रेम और सौहार्द के साथ रह रहे हैं। हर धर्म के धार्मिक स्थल यहां हैं, एक दूसरे के धार्मिक तीज त्यौहार, संस्कृति और रीति रिवाज में शरीक होते हैं। सोलन के लोक नृत्य और लोक संगीत प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। महिलाओं का पारंपरिक नृत्य जिसे "पहाड़ी गिद्दा" कहा जाता है, काफ़ी प्रसिद्ध है। पुरुषों का "थोडो" नृत्य यहाँ का पारंपरिक नृत्य है, ये नृत्य मेलों या अन्य उत्सवों के दौरान देखे जा सकते हैं। सोलन जिला का नाम माता "शूलिनी" के नाम पर रखा गया है। सोलन के प्रसिद्ध ठोडो मैदान में "शूलिनी मेला" का आयोजन किया जाता है जो तीन दिन तक चलता है। सोलन के लोग खुशमिजाज हैं, एक दूसरे के रीति रिवाज और धार्मिक आस्था का आधार बनते हैं। यहां आमतौर पर बोली जाने वाली भाषाएँ पहाड़ी, हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी हैं। सोलन के कुछ पारंपरिक व्यंजन हैं जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों को पसंद आते हैं। लुश्के, पूडे, सिडु, पचोले आदि जिला के पारंपरिक व्यंजन हैं।
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सोलन के प्रमुख पर्यटक स्थल में कसौली, डगशाई, सपाटू (सुबाथू), शूलिनी माता मंदिर, जटोली में शिव मंदिर, चैल, प्राचीन राजा महाराजाओं के किले बौद्ध मठ आदि स्थान हैं जो घूमने फिरने योग्य हैं। ये सोलन के वो स्थान हैं जहां पर्यटकों के समूह आनंद और मनोरंजन करते हुए अक्सर नजर आते हैं, बॉलीवुड की कई फिल्मों और टीवी नाटकों की शूटिंग यहां अक्सर होती रहती है। सोलन में घूमने फिरने के लिए ट्रांसपोर्ट के मुख्य साधन कार, टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदी हैं जो स्थानिय और बाहरी लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।
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