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Photo Credit : Amit Dabas |
किन्नौर, हिमाचल प्रदेश के प्राचीन क्षेत्रों में से एक है, जो ग्रेटर हिमालय, जास्कर, धौलाधार और कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं के अंतर्गत आता है। उत्तर-पश्चिम में हिमाचल के 3 ज़िलों लाहुल-स्पीति, कुल्लू, व शिमला और पूर्व में तिब्बत और चीन से भारत को जोड़ता है
। पूर्व की ओर चित्तकुल नाम का गाँव इस सीमा पर देश का अंतिम गाँव है। किनौर पर्वतीय क्षेत्र है जो जनजाति ( Tribal ) क्षेत्र की श्रेणी में आता है। किन्नौर समुद्र तल से 2316 मीटर से 6816 मीटर (7612- 22,362 फ़ीट) की ऊंचाई पर है। भगवान शिव का किन्नर कैलाश पर्वत 19500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसके नाम पर जिला का नाम किन्नौर पड़ा। महाभारत काल में किनौर में, भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का विवाह, उषा नाम की कन्या से हुआ था जो कि गंधर्व विवाह का एक रूप था। महाभारत काल के दौरान पंच पांडवों ने अपने अज्ञात काल में किन्नौर के विभिन्न स्थानों पर निवास किया था। हज़ारों साल पहले निर्मित बौद्ध मठ और गोम्पा आज भी यहाँ देखने को मिलते हैं..नक़ल जमाबन्दी में अपनी जमीन का हिस्सा कैसे निकालें ? सिर्फ 3 मिनट में II Bigha, Biswa..
प्राचीन काल में किन्नौर को कन्नौरा और किन्नौरा के नाम से जाना जाता था। किन्नौर के इतिहास के संदर्भ में काफी कम अभिलेख उपलब्ध हैं। किन्नौर किसी समय मौर्य शासकों के मगध साम्राज्य के अंतर्गत था, उस समय किन्नौर में गंधर्व, किरात, किन्नर, कंबोज आदि जातियों के लोग निवास करते थे। चीन और तिब्बत के साथ किन्नौर की सीमाएँ लगती हैं, यही कारण रहा होगा कि नौवीं शताब्दी (9वीं शताब्दी) के दौर में किन्नौर में तिब्बती संस्कृति और रीति-रिवाजों का कुछ-कुछ प्रभाव होने लगा था। उस समय यहां के छोटे बड़े शासक राज्य विस्तार के लिए आपस में लड़ते रहते थे। ये छोटी छोटी लड़ाइयां तब तक होती रहीं जब तक मुगल साम्राज्य ने इलाके पर कब्ज़ा ना कर लिया। सम्राट अकबर ने शासकों और उनके क्षेत्र को अपने अधीन ले लिया। इसके काफी समय बाद जब मुगल साम्राज्य का अंत हुआ तो ब्रिटिश हुकुमत के दौरान यह क्षेत्र महासू रियासत में चीनी तहसील के नाम से जाना जाता था। भारत के आज़ाद होने के बाद, 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद, 21 अप्रैल 1960 को किन्नौर हिमाचल के जिला के रूप में सामने आया। वर्तमान में भूगोलिक परिस्थिती के अनुरूप किन्नौर तीन प्रशासनिक क्षेत्रों विभाजित है: निचार, पूह और कल्पा। किन्नौर जिले का मुख्यालय रिकांग-पियो है जहां से जिले की प्रशासनिक गतिविधि चलती है। किन्नौर के कुल पांच (5) तहसीले हैं जिनमें : पूह, मूरंग, कल्पा, निचार और सांगला है। किन्नौर का कुल क्षेत्र 6401 वर्ग कि.मी. है. 2011 की जनगणना के अनुसार किन्नौर की कुल आबादी 84,298 है जिनमें से 46,364 पुरुष हैं। किन्नौर देश के सबसे कम आबादी वाले जिलों में एक है। किन्नौर में लिंगानुपात 818/1000 है जबकि 80.77% साक्षरता दर है। कम जनसंख्या के हिसाब से, देश में किन्नौर का 640 में से 620 नंबर है। जनसँख्या कम होने के बावज़ूद यहाँ लगभग 9 प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं। किन्नौर में हिंदू और बौद्ध धर्म के लोग निवास करते हैं। हिंदू धर्म के अनेक पवित्र स्थान यहां देखने को मिलते हैं देवी दुर्गा, भगवान शिव, देवी भीमाकाली, नारायण, विष्णु आदि देवी देवताओं के मन्दिर यहां प्राचीन काल से ही विद्यामान हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायी भी यहाँ काफ़ी संख्या में हैं, यहाँ बौद्ध धर्म के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। जिला के उपरी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के मठ और गोम्पा विद्यमान हैं। एक दूसरे के धर्म का आदर करना यहां के लोगों की खासियत हैं। हिंदू लोगों द्वारा भगवान बुद्ध की, और बौद्ध लोगों द्वारा हिंदू देवी देवताओं की पूजा यहां आम बात है। किन्नौर में किसी किसी स्थान पर आज भी प्राचीन काल से चली आ रही बहुपति प्रथा प्रचलित है। जिसके अनुसार कोई स्त्री एक से अधिक पुरुषों के साथ पत्नी धर्म निभा सकती है हालाँकि धीरे-धीरे यह रीति रिवाज अपनी चरम सीमा पर है।
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पर्वतीय क्षेत्र होने से किन्नौर का मौसम बेहद सुहावना है। यहाँ गर्मी का अनुभव कम ही होता है। उपरी क्षेत्रों में भारी हिमपात होता है। मौसम के अनुरूप ही यहां के लोगों का पहनावा है, यहां के लोग ऊन के बने कपड़े को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। ऊन से बनी टोपी, जुराबे, कोट, जैकेट आदि अधिक प्रयोग किये जाते हैं। किन्नौर के लोग काफ़ी साधारण और निडर किस्म के हैं। जिला के अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन कृषि, बागवानी, और पशुपालन है। सेब, चिलगोजा, बादाम, काला जीरा, शिलाजीत, हींग, जड़ी-बूटियां आदि यहां के लोगों की आमदनी का अच्छा साधन हैं। किन्नौर की मुख्य नकदी फसलें गेहुं, जौ, मटर आदि हैं। बाथू, सत्तू, कांकणी यहां के लोगों की मनपसंद खाद्य वस्तुएं हैं जबकि मांस को अधिक तरज़ीह दी जाती है। मांस और सत्तू के साथ मदिरापान यहां के पुरुषो की दिनचर्या में शामिल है। जौ, अंगूर, सेब और हॉप्स की बनी हुई किन्नौर की मदिरा विदेशो में भी प्रसिद्ध है।
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किन्नौर का अधिकाँश भाग हिमालय की बहुत ऊँचाई पर है, इसलिए ये पर्वत लगभग पूरा साल बर्फ से ढके रहते हैं, इस कारण यहाँ के जंगल कम हरियाली वाले और विरले हैं जिन पर सुखी घास ही दिखती है। 3500 से 5000 मीटर की ऊँचाई तक देवदार (अल्पाइन) के वृक्ष पाये जाते हैं। देवदार की लगभग 5 प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं। क्षेत्र में तेंदुआ, काला भालू, याक, बारहसिंगे, आईबैक्स जैसे पशु पाये जाते हैं। ज़िला के जंगलों में चीड़ के वृक्ष भी पाए जाते हैं। दोनों ही वृक्षों से "चिलगोज़ा" प्राप्त होता है और देश विदेश में सप्लाई किया जाता है।
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किन्नौर हिमाचल के दुर्गम क्षेत्रों में से एक है। हिमालय क्षेत्र में अत्याधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण सारा भू-भाग पर्वतीय है, इस कारण यहां यातायात के साधन सीमित हैं। सड़क मार्ग और वायु मार्ग द्वारा किन्नौर जिला में पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग भी काफी खतरनाक हैं, पहाड़ों को काट कर सड़क का निर्माण यहां संभव हुआ है। सबसे नजदीक हवाई अड्डा शिमला है। प्रदेश की राजधानी शिमला से किन्नौर की दूरी 235 किलोमीटर है। ट्रैकिंग और ड्राइविंग के शौकीन लोग लाहुल-स्पीति और कुल्लू जिला से भी सड़क मार्ग से किन्नौर आते हैं। सांगला घाटी, रिकांगपिओ, कामरू किला, मूरंग किला, कल्पा, निचार, झाकड़ी आदि स्थान पर्यटन के मनपसंद हैं।
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