हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश की पश्चिम दिशा में है। क्षेत्र के लिहाज़ से हिमाचल प्रदेश का सबसे छोटा और आबादी के लिहाज़ से सबसे अधिक
घनत्व वाला जिला हमीरपुर है। बिलासपुर, मण्डी, कांगड़ा और ऊना चार जिलों से घिरा हुआ हमीरपुर, शिवालिक पर्वत शृंखला के अंतर्गत आता है। जिले की समुद्र तल से कुल ऊंचाई 400 से 1100 मीटर है। जिला का कुछ भाग मैदानी क्षेत्र है तो कुछ भाग निम्न पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए जिला का क्षेत्र हिमाचल के अन्य पहाड़ी जिलों से कुछ अलग है। सर्दी में यहाँ मौसम ठंडा, लेकिन सुहावना और मनभावन होता है जबकि गर्मी में अधिक गर्मी पड़ती है। व्यास और सतलुज जिले की प्रमुख नदियाँ हैं। व्यास नदी पर काफी संख्या में प्राचीन काल में बने घाट और पत्तन हैं जहां से नाव द्वारा विशाल व्यास नदी को पार किया जाता है। हमीरपुर जिला में प्रदेश के सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक "बाबा बालक नाथ" और सैंकड़ों साल पुराने अन्य प्राचीन मंदिर हैं जहां हिमाचल के साथ-साथ पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के लोग लाखों की संख्या में दर्शन करने आते हैं।यह वीडियो आपके लिए रोचक हो सकता है :-
यहाँ मर कर फिर से जी उठता है एक आदमी ..Kahika Utsav 2018 Hurang Narayan ll Mandi Himachal Pradesh
भारत देश के प्राचीन साम्राज्यों में से एक "त्रिगर्त" के अंतर्गत आने वाले वर्तमान हमीरपुर जिला को यह नाम यहां के प्रसिद्ध शासक राजा हमीर चंद के नाम से मिला है। प्राचीन वेद-पुराणों और महर्षि "पाणिनि" द्वारा रचित ग्रंथ "अष्टाध्यायी" के अनुसार, "महाभारत" काल में हमीरपुर जिला का यह क्षेत्र त्रिगर्त साम्राज्य का भाग था, यह त्रिगर्त साम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था जिसके अंतर्गत वर्तमान हिमाचल का बहुत सारा क्षेत्र, पंजाब प्रदेश का भी कुछ भू-भाग आता था। प्राचीन काल में गुप्त साम्राज्य के शासकों का भी इस क्षेत्र में अधिकार रहा था, इतिहास के मध्य युग के दौर में यह भू-भाग अफगानी और अन्य मुगल शासकों मोहम्मद गजनी, तैमूरलंग, अकबर आदि के साम्राज्य सीमा के अंतर्गत आ गया। साल 1700 के आस-पास इस क्षेत्र पर "राणा" शासकों का कब्ज़ा रहा जो आपस में युद्ध लड़ते रहते थे। उस दौरान "कटोच' वंश के शासक, जो कांगड़ा का राजा था, राजा हमीरचंद ने राणाओं को हरा कर इस क्षेत्र पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया था। राजा हमीरचंद ने 1700 से 1750 तक शासन किया। कटोच शासकों ने क्षेत्र में काफी विकास कार्य करवाये। राजा हमीरचंद के नाम पर इस क्षेत्र का नाम हमीरपुर रखा गया। बाद में कटोच वंश के शासकों ने "सुजानपुर टीहरा" को हमीरपुर की राजधानी बनाया जिसके बाद यहां कई किले और मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। साल 1775 से 1823 तक हमीरपुर पर शासन करने वाले राजा संसार चंद ने सीमा विस्तार के इरादे से पहाड़ी रियासतों मण्डी, सुकेत, बिलासपुर आदि क्षत्रों को अपने अधीन लेने की कोशिश की। लेकिन उस समय इन क्षेत्रों में शक्तिशाली हो रहे "गोरखा" शासकों की सहायता से पहाड़ी रियासतों के शासकों ने राजा संसार चंद के साथ युद्ध किया जिसमें राजा संसार चंद जीत गया। इस युद्ध के परिणाम में संसार चंद की सेना आर्थिक रूप से भी कमजोर हो रही थी जिसका लाभ उठाते हुए पहाड़ी शासकों और गोरखाओं ने राजा संसार चंद की सेना पर फिर से हमला कर दिया जिसमें राजा संसार चंद हार गया और वह अपने परिवार सहित कांगड़ा के किले में नजरबंद हो गया। साल 1809 में राजा रणजीत सिंह के सहयोग से गोरखाओं को हरा कर फिर से शासन करना शुरू किया। इसके बाद ब्रिटिश काल शुरू हुआ। अंग्रेजों ने त्रिगर्त के मानचित्र पर काफ़ी फेरबदल किये जिनके कारण त्रिगर्त का क्षेत्र छोटी बड़ी कई तहसीलों में तबदील हो गया। हमीरपुर को भी तहसील का दर्ज़ा मिल गया। कांगड़ा को अलग जिला बना दिया गया। बाद में 1 सितंबर 1972 को हमीरपुर और बड़सर, 2 तहसीलों को मिला कर हमीरपुर को एक जिले का दर्ज़ा प्राप्त हुआ।
ये भी आपके लिए रोचक हो सकता है :
हमीरपुर को "वीर भूमि" भी कहा जाता है। प्राचीन समय से ही इस क्षेत्र के लोग कुशल योद्धाओं के रूप में जाने जाते हैं जो अपने राज्य की सुरक्षा के लिए मुगल, गोरखा और अंग्रेजो की सेना से युद्ध करते रहे। आज भी भारतीय सेना में हमीरपुर के हजारों युवा जवान देश की रक्षा कर रहें है। हमीरपुर जिला ने शिक्षा और विकास के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं। जिला में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), एचपी तकनीकी विश्वविद्यालय, सैनिक स्कूल, जवाहर नवोदय विद्यालय आदि राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों के अलावा अन्य कई कॉलेज और संस्थान हैं जो जिले का नाम पुरे देश में रोशन कर रहे हैं। हमीरपुर से शिक्षा प्राप्त सैंकड़ों लोग देश विदेश में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हमीरपुर में विभिन्न क्षेत्रो को जोड़ने के लिए सैंकड़ों किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया गया है। हमीरपुर में कार, बस, ऑटो आदि परिवहन का मुख्य साधन हैं। कांगड़ा ज़िले का गग्गल हवाई अड्डा सबसे नज़दीकी है जबकि पंजाब का कीरतपुर साहिब सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन (120 किमी) है। हमीरपुर में पर्यटन के लिए घूमने के लिए भी काफी मनोरम स्थान हैं जिनमें कटोच राजाओं द्वारा साल 1748 में "सुजानपुर टीहरा " नामक शहर की स्थापना के बाद निर्मित प्राचीन मंदिर हैं जिनमें प्रसिद्ध गौरी शंकर, मुरली मनोहर मन्दिर, नर्बदेश्वर मन्दिर, महादेव मंदिर, व्यास ऋषि को समर्पित व्यासेश्वर आदि स्थान मुख्य पर्यटक स्थल हैं। हमीरपुर के उपमंडल नादौन में पांडवों द्वारा निर्मित बिल्केश्वर महादेव मन्दिर काफी प्रसिद्ध है यहां से ज्वाला जी मंदिर काफी नजदीक है (12 किमी) जो कांगड़ा जिला में स्थित है। बिलासपुर जिला की सीमा से 70 किलोमीटर और हमीरपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर बाबा बालक नाथ जी का सुविख्यात मंदिर है जहां हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग बाबा के दर्शन करने के लिए आते हैं। "नवरात्र" के दौरान यहां भक्तों की असीम श्रद्धा देखने को मिलती है। हर साल होली के दौरान यहां मेले लगते हैं, इसके अलावा और भी बहुत से पर्यटक स्थल हमीरपुर में हैं जो लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।
0 टिप्पणियाँ